परिवार-कल्याण या विनाश ? जरा सोचिये !! परिवार-कल्याण या विनाश ? जरा सोचिये !!
- परम श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदासजी महाराज
जरा सोचिये, जरा विचार कीजिए कि ७२ जन्म पहले भीष्म पितामह ने एक कीड़े को एक काँटा भोंक दिया था तो उसके परिणामस्वरूप उन्हें सैकड़ों बाण खाने पड़े थे । वह तो एक छोटा सा कीड़ा था, लेकिन आज तो मनुष्य अपने ही बच्चे की निर्मम हत्या कर रहा है गर्भपात करवाकर । उसे किन नरकों की यातनाएँ सहनी पड़ेगी । मनुष्य मनुष्य का ही हत्यारा बन गया है और वह भी उस मनुष्य का जिसने आज तक कोई गलती नहीं की, कोई अपराध नहीं किया, जो पूर्णतः निर्दोष है । आप स्वयं ही फैसला करें कि उसकी उसे क्या सजा मिलनी चाहिए ? मनुष्य वह महापाप कर रहा है जिसका कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है । पशुओं के बच्चों के संरक्षण के लिए तो करोड़ों रूपये खर्च किये जा रहे हैं, वहीं मनुष्य के बच्चे के संहार के लिए करोड़ों रूपए खर्च किये जा रहे हैं । कैसी विडम्बना है मनुष्य की बुद्धि की !
जरा सोचिए... जितने भी पाप होते हैं, वे किसी के मानने और न मानने पर निर्भर नहीं करते । पाप के विषय में अर्थात् अमुक कार्य पाप है-इसका निर्णय करने में वेद, पुराण, स्मृति, शास्त्र और अनुभवी तत्त्वज्ञ महापुरुषों के वचन ही प्रमाण हैं । गर्भस्राव (सफाई), गर्भपात या भ्रूणहत्या हिन्दूधर्म के, भारतीय संस्कृति के सर्वथा विरुद्ध है । संसार का कोई भी श्रेष्ठ धर्म इस पाप को समर्थन नहीं देता और न ही दे सकता है । कारण कि यह काम मनुष्यता के विरुद्ध है । क्रूर और हिंसक पशु भी ऐसा काम नहीं करते । पृथ्वी पर मनुष्य जाति सर्वश्रेष्ठ है । संसार में जितने भी प्राणी हैं, उन सबकी रक्षा, सेवा, पालन-पोषण करने का अधिकार, योग्यता, सामथ्र्य, सामग्री और दयाभाव मनुष्य में ही है । उस मनुष्य की हत्या कर देना बहुत बड़ा पाप है । मनुष्य में भी बच्चे की हत्या कर देना सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि बच्चा निरपराध, निर्बल, निर्दोष होता है । जिस बच्चे ने अभी जन्म ही नहीं लिया, जो अभी गर्भ में ही है, उसकी हत्या कर देना महान् भयंकर पाप है । गर्भ में जीव निर्बल और असहाय अवस्था में रहता है । वह अपने बचाव के लिये कोई उपाय भी नहीं कर सकता तथा प्रतिकार भी नहीं कर सकता । वह अपनी हत्या से बचने के लिये पुकार भी नहीं सकता, रो भी नहीं सकता, चिल्ला भी नहीं सकता । उसका कोई अपराध, कसूर भी नहीं है । वह सर्वथा निर्दोष है । ऐसी अवस्था में उस निरपराध-निर्दोष शिशु की हत्या कर देना कितना महान् पाप है ! वैर-विरोध को लेकर किये जानेवाले युद्ध में तो शत्रु की हत्या का ही उद्देश्य रहता है, फिर भी उसमें निहत्थे सैनिक पर शस्त्र नहीं चलाया जाता । पहले उसे सावधान करते हुए युद्ध के लिये ललकारते हैं, फिर शस्त्र चलाते हैं । परन्तु गर्भस्थ शिशु तो सर्वथा असहाय होकर पड़ा हुआ है ।
उसको इस बात का ज्ञान ही नहीं है कि कोई मुझे मार रहा है । ऐसी अवस्था में उस मूक प्राणी की दर्दनाक हत्या कर देना कितना भयंकर पाप है ? कितना घोर अन्याय है ? जिसको जीवित नहीं कर सकते, उसको मारने का अधिकार कैसे हो सकता है ? जीवमात्र को जीने का अधिकार है । उसको गर्भ में ही नष्ट करके उसके अधिकार को छीनना महान् पाप है ।
मनुष्य को दूसरों की सेवा करने का, उनको सुख पहुँचाने का अधिकार है, किसी का नाश करने का कभी अधिकार नहीं है । अगर गर्भपात की प्रथा चल पड़ेगी तो फिर मनुष्य राक्षसों से भी बहुत नीचे हो जायेंगे । रावण और हिरण्यकशिपु के राज्य में भी गर्भपाप जैसा महापाप नहीं हुआ । गर्भपात (एबोर्शन) या भ्रूण-हत्या से जहाँ एक ओर निरपराध गर्भस्थ शिशु की निर्मम हत्या होती है वहीं दूसरी ओर गर्भपात करानेवाली माँ को भी कई जटिलताओं का, समस्याओं का न्यूनाधिक संकट उत्पन्न हो ही जाता है । इनमें से कुछ सम्भावित जटिलताएँ तात्कालिक प्रभाववाली व कुछ दीर्घकालीन प्रभाववाली होती हैं, जो माँ को न केवल आगे के लिए बाँझ बना सकती हैं बल्कि उसकी जान तक को खतरा उत्पन्न कर सकती हैं । प्रतिवर्ष गर्भाशय में ही काट-काटकर लाखों निर्दोष मासूम बच्चों की हत्या कराना एक जघन्य अपराध है ।
विश्व के अनेक देशों में तो खूनियों तक को भी फाँसी नहीं दी जाती क्योंकि किसी का जीवन लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है । गर्भपात द्वारा हत्या तो फाँसी से भी अधिक क्रूर है । फाँसी से तत्काल मृत्यु होती है । जबकि गर्भपात में बच्चा अधिक समय तक तड़पकर मरता है । फाँसी किसी भयंकर अपराध करनेवाले को ही दी जाती है, जबकि गर्भपात का शिकार बच्चा बिल्कुल निर्दोष होता है । मासूम बच्चों को किसी न्यायालय में प्रस्तुत होने या अपनी ओर से न्यायालय में याचिका दिलवाकर केस लड़ने का मौका होता तो इन गर्भपात करनेवाले डॉक्टरों को एवं गर्भपात करानेवाले माँ-बापों को विश्व की कोई भी शक्ति फाँसी के फंदे से नहीं बचा पाती ।
गर्भपातनपापाढ्या बभूव प्राग्भवऽण्डज ।
साऽत्रैव तेन पापेन गर्भस्थैर्यं न विन्दति ।।
‘हे अरुण ! जो पूर्वजन्म में गर्भपात करती है, इस जन्म में उस पाप के कारण उसका गर्भ नहीं ठहरता अर्थात् वह सन्तानहीन होती है ।‘
